अवसाद से गुज़र रहे व्यक्ति की देखरेख
इन बातों का ख़्याल रखकर आप अवसाद से गुज़र रहे किसी शख़्स (दोस्त, रिश्तेदार वग़ैरह) की देखरेख बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं:
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इसके बारे में पढ़ें
विश्वसनीय स्रोत से, विकार के बारे में और इसके इलाज के लिए मौजूद विकल्प के बारे में जानें WHO, APA, White Swan Foundation for Mental Health, Minds.
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अपनी सीमाओं को पहचानें
अवसाद से गुज़र रहे किसी व्यक्ति की देखभाल करना अपने आप में काफ़ी थका देने वाला काम होता है। ऐसे में देखभालकर्ता को कुछ सीमाओं का ख़्याल रखना ज़रूरी है। उसे अपनी मानसिक सेहत के लिए, ज़रूरत पड़ने पर कुछ समय ख़ुद की देखभाल के लिए रखना चाहिए, जिसमें आराम करना भी शामिल है।
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बातचीत के मंच को पारदर्शी और खुला रखें
दूसरे व्यक्ति के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाएं, जहां वह खुलकर बात कर सके, बिना किसी डर या इस एहसास के कि सामने वाला व्यक्ति उसके बारे में क्या सोचेगा।
ऐसे में हमें इन बिंदुओं का ख़्याल रखने की काफ़ी ज़रूरत है:
उन पर बात करने का दबाव न बनाएं
यह न कहें
“अगर तुम मुझे अपनी परेशानी नहीं बताआगे/ बताओगी, तो तुम्हारी मदद कैसे हो पाएगी?”
क्यों
अपनी भावनाएं आपको बताने के लिए, उन्हें कुछ वक़्त दें। उन्हें इस बात का यक़ीन दिलाएं कि जब वह बात करने के लिए तैयार हों, तो आप उस वक़्त मौजूद होंगे।
क्या कहना चाहिए
“लगता है तुम इस पर कुछ बात नहीं करना चाहते/चाहती। हालांकि, जब भी तुम्हें कुछ कहने का मन हो, तो मैं सुनने को तैयार हूँ।”
उनके तनाव को हल्का न आंकें
यह न कहें
“हर किसी के पास कोई न कोई परेशानी है.”
क्यों
हर किसी का अनुभव अलग होता है, किसी इंसान के अनुभव की दूसरों के साथ तुलना करने से आप उनकी तकलीफ़ के असर को कम नहीं आंक सकते।
क्या कहना चाहिए
“मुझे अफ़सोस है कि तुम्हें इस मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ रहा है.”
उन्हें अपनी भावनाओं को दबाने को न कहें
यह न कहें
“बुरा मत महसूस करो, चलो मुस्कुराओ!”
क्यों
जिन भावनाओं को वे महसूस कर रहे हैं उन पर उनका नियंत्रण नहीं है
क्या कहना चाहिए
“बुरा लगना कोई ख़राब बात नहीं है, इस एहसास को बाहर आने दो। ”
ऐसा कोई काम करने को न कहें जिसे वह नहीं करना चाहते
यह न कहें
“बाहर निकलो और लोगों से मिलो!”
क्यों
“अवसाद न सिर्फ़ आपको प्रेरित होने से रोकता है, बल्कि यह आपके जोश को भी कम कर देता है”
क्या कहना चाहिए
“मैं तुम्हारे साथ समय बिताने के लिए तैयार हूँ और ज़रूरी नहीं कि हम उस दौरान कोई बात करें”
सामने वाले की बेहतरी के लिए, उससे सख़्ती से पेश न आएं
यह न कहें
“क्या तुम बेहतर महसूस नहीं करना चाहते ? अगर हाँ, तो आज ही इससे बाहर आजाओ !”
क्यों
“ठीक होने में वक़्त लगता है। इसलिए, धैर्य बनाएं रखें और उनका साथ दें।”
क्या कहना चाहिए
“मुझे तुम्हारी चिंता है। क्या तुम्हारी मदद करने के लिए मैं कुछ कर सकता/सकती हूँI?”
दया भाव वाले कॉमेंट करने से बचें
यह न कहें
“देखो तो, आज कौन जल्दी उठा है!”
क्यों
जब वे कोई काम पूरा करें, तो उस तरह के कॉमेंट करें जिनसे उनका हौसला बढ़े।
क्या कहना चाहिए
“तुम्हें जल्दी उठा हुआ देखकर अच्छा लगा, तुम नाश्ता करना पसंद करोगे/ करोगी ?”
जब आपका प्रोत्साहन उल्टा असर कर जाए
यह न कहें
“तुम काफ़ी मज़बूत हो , इस मुश्किल से भी बढ़कर।”
क्यों
“बेशक आपकी नियत नेक हो और मदद की भावना लिए हो, बावजूद इसके इस तरह के कॉमेंट, सामने वाले व्यक्ति के आत्मविश्वास को कमज़ोर कर सकते हैं।
क्या कहना चाहिए
“तुम्हें इतनी तकलीफ़ में देखना काफ़ी मुश्किल है, क्या तुम इस पर बात करना पसंद करोगे/ करोगी?”