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शोक/दुःख

शोक ऐसी अनुभूति है जिसका सामना हम किसी चीज़ के खोने पर करते हैं। ख़ास तौर पर, जब वास्तविकता उस तस्वीर से मेल नहीं खाती जिसकी हम कल्पना करते हैं।

शोक या दुःख, आम तौर पर किसी प्रियजन के गुज़रने के साथ जुड़ा होता है। हालांकि, आप कई दूसरी स्थितियों में भी दुःख का अनुभव कर सकते हैं, जैसे:

  • किसी प्रियजन की मृत्यु
  • दोस्ती या रिश्ता टूटना
  • किसी पालतू जानवर का खो जाना या मृत्यु
  • नौकरी छूटना
  • तलाक होना
  • दूसरे शहर चले जाना
  • आर्थिक नुक़सान होना
  • किसी बीमारी का पता चलना
  • प्रियजन की बीमारी या तकलीफ़ का पता चलना

कुछ लोगों को इनमें से कुछ परिस्थितियां ज़्यादा गंभीर नहीं लग सकतीं। हालांकि, इससे जुड़े दुःख या शोक की गहराई और उसकी तीव्रता को महसूस कर सकते हैं।

शोक के विभिन्न चरण क्या हैं?

शोक के दौरान हम कुल पांच चरणों से गुज़रते हैं। ये चरण हमें यह समझने में मदद करते हैं कि क्या बदला है और हम नई स्थिति के लिए ख़ुद को कैसे ढाल सकते हैं।

अस्वीकार

“यह नहीं हो सकता””

पहले चरण में हम उस घटना को स्वीकार न करने या इंकार के मोड़ में होते हैं। इसमें आप सब कुछ ठीक मानकर, उस स्थिति को अपनाने से गुरेज़ करते हैं।

ग़ुस्सा

“मेरे साथ यह कैसे हो सकता है?”

दूसरे चरण में आप ख़ुद पर, हालात से या दूसरों पर ग़ुस्सा महसूस कर सकते हैं।.

समझौता

“काश, उनके साथ कुछ और वक़्त गुज़र पाता”

इस चरण में आप, हो चुकी घटनाओं को कुछ हद तक स्वीकारते हुए, उम्मीद और विश्वास के ज़रिए उस स्थिति से उभरने और लड़ने की कोशिश करते हैं।

झलक

“यह वाक़ई हो रहा है”

इस चरण में, हम हो चुकी घटना के असर और नुक़सान की भयावहता को समझने लगते हैं।

स्वीकृति

“मुझे ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाने की कोशिश करनी चाहिए”

दु: ख के इस आख़िरी चरण में, आप नुक़सान को अपना लेते हैं और ज़िन्दगी में अब आगे बढ़ना चाहते हैं। आप स्थिति से उबरने या उससे निपटने के तरीके खोजने की कोशिश करते हैं।

इस बात को समझना ज़रूरी है कि किसी भी तरह के नुक़सान का अनुभव, हर एक व्यक्ति के लिए एक जैसा नहीं होता और हर कोई अलग-अलग अंदाज़ में उस दुःख और शोक को बयां करता है। दु: ख के चरणों से गुजरते वक़्त, कुछ लोग कुछ चरणों को छोड़ सकते हैं; कुछ जल्दी उभर सकते हैं। दुःख जताने की कोई तय समयसीमा या तरीक़ा मौजूद नहीं है।

शोक का सामना कैसे करें

किसी दुःख या शोक को महसूस करना, हमारे शरीर के लिए, दर्द से निपटने का तरीका है। इसके अलावा, इससे आपका स्वास्थ्य फिर से बहाल होने लगता। शोक के दौरान आप लगातार इस बात को सोच रहे होते हैं कि आपने क्या खोया है और उसके परिणाम क्या हैं। ऐसे में आप अलग-अलग तरह की कई भावनाओं का अनुभव करते हैं, जैसे:

  • उदासी
  • ग़ुस्सा
  • अपराध बोध
  • खेद/ अफ़सोस
  • दर्द
  • चिंता
  • तनहाई/ ख़ालीपन
  • निराशा

इन भावनाओं को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है और उन्हें गुज़रने देना भी ज़रूरी है। हालांकि, जहां एक तरफ़ अपने जीवन के साथ आगे बढ़ जाना अहम है, वहीं, पूरी तरह से शोक जताने के लिए ख़ुद को समय और मौक़ा देना आवश्यक है।

दुःख और शोक को अगर दबाया जाए या उसका इज़हार न किया जाए, तो यह मानसिक और शारीरिक तनाव पैदा करता है। शोक को छिपाने, दबाने या उससे जल्द से जल्द बाहर आने की कोशिश आपको अवसाद में घेर सकती है।

अगर आप इस बात से चिंतित हैं कि आपको दु: ख से उभरने में सामान्य से ज़्यादा समय लग रहा है, हमें “मन टॉक्स” के हेल्पलाइन पर कॉल करें या ईमेल द्वारा संपर्क करें, ताकि आप मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े हमारे किसी पेशेवर से बात कर सकें।

जब आपके क़रीबी लोग शोक में हों

अक्सर लोग यह तय नहीं कर पाते कि किसी के दुःख और शोक पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए। उन्हें लगता है कि शोक में डूबे व्यक्ति से बात करके, वह उसे ज़्यादा दर्द दे सकते हैं। इसलिए, वह उस स्थिति से पूरी तरह से दूरी बना लेना सही समझते हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग दुःख से जूझ रहे शख्श को जल्द से जल्द उससे बाहर निकलने और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने पर ज़ोर देते हैं। इनमें से कोई भी दृष्टिकोण सही नहीं है।

किसी के दुःख को लेकर कोई धारणा न बनाएं

किसी ख़राब परिस्थिति में किया गया फ़ैसला भी नुक़सान या दुःख की वजह हो सकता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जो एक ख़राब और नाकाम रिश्ते से बाहर निकल रहा हो, उसमें भी दुःख की भावना महसूस हो सकती है। ऐसे में, दु: ख का अनुभव करने पर किसी व्यक्ति को लेकर राय क़ायम न करें। दु: ख का अनुभव करना, परिवर्तन को स्वीकार करने का एक स्वाभाविक हिस्सा है।

सोच समझकर ही अपनी बात कहें

ऐसे मौक़ों पर हम अपनी सांत्वना और शब्दों को कैसे बयां करें यह महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर आप किसी व्यक्ति के भावनात्मक दुःख को बढ़ाए बिना, उससे बात कर सकते हैं:

सहानुभूति जताएं: “तुम्हें इससे बाहर आना होगा” कहने से अच्छा रहेगा कि हम यह कहें- “मुझे इसका एहसास है कि यह वक़्त तुम्हारे लिए काफ़ी मुश्किल भरा होगा”।

अपनी सलाह को थोपने से बचें- आप चाहें, तो अपनी बात इस अंदाज़ में कह सकते हैं कि सामने वाले को उसमें आपकी निजी राय न झलके, बल्कि उसके पास आपकी राय को अपनाने या न अपनाने का ऑप्शन हो, “मुझे लगता है कि (…)” जैसे वाक्य कहने के बदले आप कह सकते हैं “क्या तुम इस बात पर कुछ सोचना पसंद करोगे?”

एक अच्छा श्रोता बनें

किसी तरह के दुःख और तकलीफ़ में अगर आप उस व्यक्ति की बात ध्यान से सुनते हैं, तो इससे बड़ी कोई चीज़ नहीं हो सकती। बिना कोई राय क़ायम किए, उनकी बात ध्यान से सुनें और उन्हें अपने भीतर की तमाम भावनाओं को कहने दें। कोई सलाह देने के बदले, उनसे सहानुभूति जताएं। अगर उन्हें अपनी बात कहने में शंका या परेशानी महसूस हो, तो उन्हें इस बात का एहसास ज़रूर कराएं कि वे जब चाहें तब अपनी बात आपसे शेयर कर सकते हैं।